शब्दकोश

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किताबों से इंटरनैट तक पहुँच गए

बच्चों के लिए एक लेख

कई बार ऐसा होता कि किताबों में जो शब्द हम पढ़ते हैं उन में से कई का मतलब हमारी समझ में नहीं आता. तब तो हम किसी से उस शब्द का अर्थ पूछेंगे, या फिर किसी शब्दकोश की सहायता लेंगे.

शब्दकोश एक ख़ास तरह की किताब होता है. इंगलिश में इसे डिक्शनरी कहते हैं. शब्दकोश में शब्दों को एक के बाद अकारादि क्रम से लिखा गया होता है, जैसे : अंक, अंकगणित, अंकुर, अंकुश…, या : अंग, अंगद, अंगारा… या : आग, आगत, आगम…, या : कक्ष, कक्षा, कगार…, खग, खगोल, खचखच

हर शब्द के बाद बताया जाता है कि वह शब्द संज्ञा है या सर्वनाम या क्रिया आदि. इस जानकारी के बाद उस का अर्थ लिखा जाता है. बड़े कोशों में शब्द का अर्थ समझाने के लिए उस की परिभाषा भी होती है. कई बार यह भी बताया जाता है कि वह शब्द कैसे बना. हमारी अपनी भाषा का शब्द है या किसी और भाषा से आया है.

हर किताब को पढ़ते समय हर अनजान शब्द के अर्थ समझना बहुत ज़रूरी होता है. तभी किताब पढ़ने से हमें पूरा ज्ञान मिल जाएगा. मान लीजिए माँ शब्द है. यह तो हम अच्छी तरह जानते हैं कि माँ, क्या होती है. अम्मा, अम्माँ, मम्मी, माई, माता लिखे हैं तो भी कोई मुश्किल नहीं होती. ये शब्द हम बचपन से ही जानते हैं. लेकिन कहीं जननी लिखा होगा तो हम में से कुछ को उस के मायने पता नहीं होते. तब हम जननी शब्द किसी कोश में खोजेंगे. वहाँ लिखा होगा – जन्म देने वाली, मां, माता.

बारिश के लिए कई शब्द हम बचपन से ही जान जाते हैं, जैसे- वर्षा, बरखा, बरसात, बूँदाबाँदी…

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इसी प्रकार वर्षा ऋतु के अनेक शब्द हमें पता होते हैं, जैसे- चौमासा, बरसात. लेकिन पावस और वृष्टि जैसे शब्द शायद हमें नए लगें. इन का अर्थ भी बारिश या वर्षा ऋतु है – यह कोश ही बताता है.

चौमासा तो ठीक है, लेकिन चातुर्मास आ गया तो मुश्किल बढ़ जाती है. तब हमें कोश देखना चाहिए. पहले जब साधु संत देश भर में घूमा करते थे, तो बारिश के मौसम में कच्चे रास्ते चलने लायक़ नहीं रहते थे. इस लिए वे लोग किसी उपयुक्त स्थान पार चार महीनों का पड़ाव करते थे. शब्दकोश हमें बताएगा कि बरसात में पड़ाव की इस प्रथा को ही चातुर्मास कहते हैं.

हर भाषा में कई बार एक ही शब्द के कई मायने होते हैं. तब भी संकट हो जाता है. हिंदी का एक शुरूआती शब्द अंक ही लीजिए. इस के क्या क्या मायने हो सकते हैं यह हमें शब्दकोश से ही पता चलता है. जैसे- संख्या, गोदी, चिह्न, नाटक का एक भाग

इसी लिए कहा गया है कि हर घर में, हर विद्यार्थी के पास शब्दकोश अवश्य होना चाहिए. इस के बिना भाषा को समझना असंभव हो जाता है. भाषा और शब्दों पर अधिकार ही हमें अपनी बात सही तरह कहने की शक्ति देता है. संस्कृत के महान वैयाकरणिक महर्षि पतंजलि का कहना है : सही तरह समझे और इस्तेमाल किए गए शब्द इच्छाओँ की पूर्ति का साधन हैँ. यही कारण है कि जब से आदमी ने भाषा में काम करना सीखा, तभी से वह जान गया था कि अपनी बात प्रभावशाली ढंग कहने के लिए हर किसी को भाषा की और उस के शब्दों की जानकारी बेहद ज़रूरी है. तभी वह सही शब्दों का इस्तेमाल कर सकता है. लोगों की मदद के लिए ही शब्दकोश बनाए गए.

तरह तरह के कोश – किताबों से इंटरनैट तक

शब्दकोश कई तरह के होते हैं. विद्यार्थियों के लिए कोशों में शब्दों की संख्या तो कम होती ही है, जो जानकारी दी जाती है वह भी उतनी ही दी जाती है जितनी से उन का काम चल जाए. उन में व्याख्याएँ या परिभाषाएँ बहुत आसान शब्दों में लिखी जाती हैं. जैसे जैसे उमर बढ़ती जाती है, वैसे वैसे शब्दकोशों का स्तर भी ऊँचा होता जाता है. शब्दकोश अलग अलग विषयों के लिए भी बनाए जाते हैं. विज्ञान के छात्रों के कोशों में वैज्ञानिक शब्दावली का संकलन होता है.

विद्यार्थियों का भाषा ज्ञान बढ़ाने के लिए विद्यालयों में पर्याय शब्द सिखाए जाते हैं, ताकि वे अपनी बात कहने के लिए सही शब्द काम में ला सकें. उन की सहायता के लिए पर्याय कोश बनाए जाते हैं.

यहाँ सामान्य शब्दकोश और पर्याय कोश का अंतर समझाना ज़रूरी है. शब्दकोश को हम शब्दार्थ कोश कह सकते हैं. उन में किसी शब्द का अर्थ बताने लिए एक दो शब्द ही लिखे जाते हैं. उदाहरण के लिए आसान सा पानी शब्द लेते हैं. पानी का अर्थ तो हम लोग जानते ही हैं. लेकिन यदि हम अपने किसी निबंध में पानी की जगह कोई और शब्द लिखना चाहते हैं, या कक्षा में हमें पानी के पर्याय शब्द बताने के लिए कहा जाता है, तो हम मुँह ताकते रह जाएँगे. शब्दार्थ कोश पानी के एक दो नए शब्द (देखने में अच्छा, आकर्षक, आदि) दे कर बात ख़त्म कर देगा. किसी भी पर्याय कोश में हमें पानी के इतने सारे शब्द मिल जाएँगे - कम से कम दस बारह शब्द तो होंगे ही. जैसे-- जल सं अंब, अंबु, अंभ, अर्ण, आप, आपस्, आब, उदक, घनरस, घनसार, तोय, नीर, पय, पानी, मेघपुष्प, वारि, वार्दर, सर, सलिल.

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और अगर हमें सुंदर के पर्याय चाहिएँ, तो पर्याय कोश देता है - अंचित, अभिराम, अभिरूप, अलौकिक, आकर्षक, कोमलकाय, ख़ूबसूरत, चारु, चित्ताकर्षक, छबीला, दर्शनीय, नयनाभिराम, प्रियदर्शी, मंजुल, मनमोहक, मनमोहन, मनहर, मनोरम, मनोहर, मोहक, मोहन, रमणीक, रूपशाली, वपुष्मान, सम्मोहक, सलोना, सुदर्शन, सुरूप, सुहाना, सौंदर्यशाली, हसीन.

पर्याय कोश से भी आगे थिसारस होते हैं. इंगलिश में रोजेट का थिसारस विश्व प्रसिद्ध है. संस्कृत भाषा में अमरसिंह का अमर कोश होता था. कुछ साल पहले हम ने (मैं ने और मेरी पत्नी ने) हिंदी का पहला थिसारस बनाया. उस का नाम है समांतर कोश. थिसारस में पर्यायवाची तो होते ही हैं, उन से संबद्ध और उन के विपरीत शब्द भी दिए जाते हैं. जैसे सुंदर के पास ही सुडौल, और सुंदर का विपरीत कुरूप : अदर्शनीय, अप्रियदर्शन, असुंदर, कुदर्शन, बदशक्ल, बदसूरत. और उस के पास ही बेडौल : कुडौल, अनगढ़, ऐँचा बैँचा, कुढंगा, भौँड़ा, विकृत, विद्रूप.

शब्दकोशों की बात यहीं पूरी नहीं होती. अभी तक मैं ने एकभाषाई कोशों का ज़िक्र किया. आज की दुनिया में द्विभाषी कोश अत्यावश्यक हो गए हैं.सारे संसार में अनेक भाषाओं के द्विभाषी कोश बनते रहे हैं. भारत में पहले संस्कृत-हिंदी कोश बनते थे. अब उन्नीसवीं-बीसवीं सदी से इंगलिश-हिंदी या हिंदी-इंगलिश कोश हर एक के पास होना बेदह ज़रूरी हो गया है. ऐसे द्विभाषी कोश भी आरंभिक स्तर से ले कर उच्चतम स्तर के होते हैं. इंगलिश-हिंदी कोशों में डाक्टर हरदेव बाहरी के कोश मुझे बहुत अच्छे लगते हैं. यही नहीं. संसार में द्विभाषी पर्याय कोश और थिसारस उपलब्ध हैं. लेकिन हिंदी-इंगलिश या इंगलिश-हिंदी थिसारस अभी तक नहीं बने थे. इस विधा में अभी तक एकमात्र कोश है हमारा द पेंगुइन इंगलिश-हिंदी हिंदी इंगलिश थिसारस ऐंड डिक्शनरी. तीन खंडों वाला यह कोश उच्चतम स्तर के लिए बनाया गया है. अभी तक आरंभिक स्तर का कोई हिंदी-इंगलिश या इंगलिश-हिंदी थिसारस उपलब्ध नहीं है.

और अंत में-

यह कंप्यूटरों का और इंटरनैट का युग है. अब अनेक विद्यार्थियों के पास कंप्यूटर हो गया है. वे इंटरनैट पर भी सक्रिय रहते हैं, और तरह तरह की जानकारी वहाँ से बटोरते हैं. और इंटरनैट जानकारी ही नहीं, बहुत सारे कोश और थिसारस भी मिलने लगे हैं. उन में से एक द्विभाषी थिसारस है मेरा अरविंद लैक्सिकन.f इस का पता है www.arvindlexicon.com. आप के पास कंप्यूटर हो तो, इंटरनैट पर यही नहीँ अन्य कोश भी तलाशने में देरी मत कीजिए.

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